रविवार, 4 दिसंबर 2011

बढ़े भारत निर्माण की ओर

एक लम्बे समयांतराल के बाद ब्लॉग जगत में उपस्थित हो सका हूँ. ब्लॉग पे पोस्ट करने के लिए ढेरों समसायिक मुद्दे है जिनपर अपनी बात आप ब्लॉगर बन्धुवों के सामने रखने का मन बनाया लेकिन पहली प्राथमिकता किसे दी जाय यह सोच कर कल शाम तक थोडा असमंजस में था. कल शाम में छात्रावास से बहार के एक छोटे प्रवास ने आज के पोस्ट के लिए दिशा निर्धारित कर दी.
जैसा की हम सब जानते हैं चुनावों का दौर आ गया है. लोक लुभावने वादों और सड़कों चौराहों पर बड़े-बड़े बैनर पोस्टर के माध्यम से जन प्रतिनिधि अपना दस्तक देना शुरू कर दिए हैं. पिछले सालों के अधूरे वादों और इन दिनों हुए करतूतों पर पर्दे डालने की पूरी तैयारी चल रही है. लगभग सभी बड़ी पार्टियाँ जाती,धर्म संप्रदाय,आरक्षण जैसे विषाक्त मुद्दों के साथ एक बार फिर से चुनावी बिसात बिछाने में लगी हुई हैं. ऐसे में आप क्या सोचते हैं?????????
१. क्या आप ये नहीं सोचते की कोई ऐसी पार्टी होती जो राष्ट्रवाद की बात करती न की जाती धर्म संप्रदाय की ?
२. क्या आप ये नहीं सोचते की एक ऐसी पार्टी जो ब्रह्मण, यादव या हरिजन सम्मलेन के बजाय विशुद्ध भारतियों का सम्मलेन करवाती?
३. क्या आप ये नहीं चाहते की आप जिस उम्मीदवार को चुनने जा रहे हैं वो शिक्षित,युवा.नई उर्जा से परिपूर्ण और  समाज के सभी वर्गों के लोगों को एक साथ लेकर चलने वाला हो?
४. क्या आपको ये नहीं लगता की भारत का निर्माण बंद वातानुकूलित कमरों में रहने वाले या फिर हार्वर्ड और आक्सफोर्ड में पढने वाले नहीं बल्कि भारत और भारतीय मूल्यों को समझने वाला ज्यादा अच्छे तरीके से कर सकते है?
५. जो गलती ईस्ट इण्डिया कम्पनी को लेकर हुई ऍफ़.डी.आई को लेकर वहीँ गलती दुहराने वालों और उसमे भी उनको मूक सहमती देने वालों से आप क्या उम्मीद कर सकते हैं?
६. पश्चिमी सभ्यता के अनुशरण की अंधी दौड़ में दौड़ने वालों को यह बात समझ में क्यों नहीं आती की भारत का विकास भारतीय परम्पराओं और मूल्यों को ध्यान में रखकर ही किया जा सकता है. इन्हें यह भी देखना चाहिए की अंततः वे हमारा अनुशरण करने में लगे हैं, जो कि हाल ही में ओबामा के बयान से साबित भी हो गया है.
७. आरक्षण जैसे कोढ़ को दिन प्रतिदिन बढ़ावा देने वालों को ये भी सोचना चाहिए की जिस समानता की बात को लेकर इसे लागु किया गया था वो पिछले ६४ वर्षों में हासिल क्यों नहीं किया जा सका? स्वतंत्रता के ६४ साल बाद भी पिछड़ा आज भी पिछड़ा और दलित आज भी दलित क्यों है? आपको क्या लगता है,किसी का पैर तोड़कर उसे बैसाखी दे देने से समस्या का समाधान हो जाता है?
८. एक अरब बीस करोण जसंख्या वाला देश १८ करोण के पाकिस्तान के लिए नीतियाँ बनाने के लिए ३६ करोण के आमेरिका की तरफ क्यों देखता है?
९. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कोई एक भी ऐसी पार्टी नहीं जिसने खुलकर बोला हो, ऐसे मे सब के सब एक से ही दिखते हैं. मजे की बात तो ये रही की अन्ना के जनलोकपाल बिल पर चर्चा करने के लिए जो स्थाई समिति बने गई उसमे इसके धुर विरोधियों को जगह दिया गया. ऐसे में आप इनके मानसिकता का अंदाजा लगा सकते हैं. क्या आप भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना नहीं देखते हैं?
१०. क्या आपको ये नहीं लगता की उपलब्ध संसाधनों में से ही बेहतर का चुनाव करना श्रेयस्कर हो गा बजाय इसके की जो सुलभ नहीं उसके लिए भाग दौड़ मचायें?
आपको बताता चलूँ की मेरा राजनीती से ज्यादा सरोकार नहीं है लेकिन राष्ट्र से है. राष्ट्र के विकाश के लिए गाँधी,सुभाष चन्द्र बोश,भगत सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी और फिर अन्ना के विचारों और कार्यों से सहमत हूँ.  उपरोक्त बातें तो दिमाग में बहुत दिनों से थीं इसी बिच कल ओमेन्द्र भारत जी से मिला और इसे संभव बनाने का काम किया पवन मिश्रा सर ने. हालाँकि ओमेन्द्र जी के बारे में पहले भी बहुत कुछ सुन चूका था और बहुत दिनों से मिलने की इच्छा भी थी. एक छोटी सी मुलाकात ने ही उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए भारत निर्माण के जो सपने बुना करता था उसे थोड़ी और मजबूती प्रदान कर दी. भारतीय प्रोद्योगिकी संसथान कानपूर से M.Tech की डिग्री लेने का बाद बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी की नौकरी छोड़कर आज देश सेवा को समर्पित ओमेन्द्र जी ईमानदार,योग्य,कुशल वक्ता,कुछ कर गुजरने की उर्जा से परिपूर्ण राष्ट्रवादी हैं.देश के लिए बुने गए अपने सपने को साकार करने के लिए इन्होने जन राज्य पार्टी की स्थापना की है और इस बार होने वाले विधान सभा चुनाव के लिए कमर कस चुके हैं. पार्टी को सम्पूर्ण भारत में पहचान दिलाने के लिए भारतीय प्रोद्योगिकी संसथान के कई युवा और समाज के अन्य शिक्षित वर्ग के लोग आज उनके साथ हैं. आज, कल को देखते हुए यही कहना चाहूँगा की युवा इनकी सबसे बड़ी शक्ति और दूरदर्शिता इनकी  सबसे बड़ी हथियार साबित होगी. ओमेन्द्र जी के कल के लिए असीम अनंत शुभकामनायें.

पवन सर और ओमेन्द्र भारत


मै और ओमेन्द्र जी 

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